"संध्या वंदना" सुमित्रानंदन पन्त की प्रकृति से जुडी एक और रचना है जिसमे पन्त जी संध्या का महत्व बताते हैं। संध्या दिन का वो समय होता है जिसमें सभी प्राणी दिन भर के परिश्रम के बाद घर लौटते हैं एवं संध्या का सुरम्य वातावरण उन्हें आराम देता है।
भाषा की बारीकियों/ व्यवस्था/ ढंग पर ध्यान देते हुए उसकी सराहना करते हैं, जैसे- कविता में लय- तुक, वर्ण- आवृत्ति (छंद) तथा कहानी, निबंध में मुहावरे लोकोक्ति आदि।अपने परिवेश में मौजूद लोककथाओं और लोकगीतों के बारे में जानते हुए चर्चा करते हैं।
संध्या वंदना: